तपते जेठ की दुपहरी मे ,जनवासे जैसा सजा शहर पूरे विश्व मे एक ही है।अपना लखनऊ। बजरंगबली महाराज की कृपा है लखनऊ वासियों पर जो बंद कमरे के ए सी से निकल कर लोग भंडारे आयोजित करते हैं। तो खाने वाले भी कम नहीं पैदल चलते गरीब से लेकर बी एम डब्लू से उतर कर लोग श्रृद्धा और स्वाद से भंडारे का प्रसाद छकते है। जेठ के इसी महीने मे सबके बैग पर्स मे पालीथीन के पैकेट,गाड़ी मे टिफिन ,पानी की खाली बोतलें रखकर चलते हैं। वह इसलिए की भंडारे मे बंटने वाली पूड़ी सब्जी, छोले चावल, कढ़ी चावल, शरबत, आदि जो घर मे बैठे है उनके लिए ले जाना है ।एक दोने के बाद दूसरा दोना मांगना तो जरूरी है। मांगने पर पालीथीन देना भी एक बड़ा दान माना जाता है।लखनऊ वाले ही ऐसे हैं जो शान से कहते हैं हम तो जेठ के महीने मे भी भरी दुपहरी मे घुमते हैं। जेठ के इस महीने मे मंगलवार को जो घर मे खाना बनाये ,और जो खायें उसे बहुत आलसी माना जाता है । कहते हैं क्या बीमारों की तरह घर मे पडे हो बाहर आकर फलां भंडारे का प्रसाद खाते तो मजा आ जाता ।यार तुमने बहुत बढ़िया प्रसाद छोड़ दिया। अब एक वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी ।अगले वर्ष ही मिलेगा। ऐसे भीषण गर्मी मे भंडारे खाने वाले बीमारी से भी बचते हैं । क्योंकि गर्मी से बीमारी के जीवाणु,विषाणु सब मर जाते हैं।तो भाईयों और मेरे पति की बहनों अभी जेठ के तीन मंगल और बाकी है बीच मे कुछ लोग शनिवार को भी भंडारे लगाते हैं । परिवर्तन चौक पर तो लगातार एक महीने चलता है । तो गर्मी को करें दरकिनार निकले छके बजरंगबली के भंडारों का प्रसाद।
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