कहानी संख्या -22,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
राम गोपाल जी को आज ओल्ड एज होम में आए एक महीना हो चुका था। उनका बेटा, बहू और पोती उनके पोते के पास एक महीने के लिए अमेरिका गए हुए थे। कल वो वापस भारत आने वाले थे। जाने से पहले वो अपने पिता राम गोपाल जी को इस ओल्ड एज होम में छोड़ कर गए थे। ये ओल्ड एज होम आम वृद्धाश्रम से अलग था। यह ओल्ड एज होम धर्मार्थ चलने वाली निशुल्क संस्था नही थी।यहां पर बुजुर्गो के रहने के लिए मासिक शुल्क देना होता था। यहां वृद्धाश्रम के मुकाबले अच्छी सुविधाएं थी। यहां कमरे सिंगल, डबल शेयरिंग भी मिलते थे तो यहां डॉरमेटरी भी थी जिसमें छह लोग एक साथ रहते थे। यहां बुजुर्गो को अच्छी सुविधाएं प्रदान की जाती थी। खाने पीने को भी अच्छी सुविधा थी। सुबह सभी को योगा करवाया जाता था। हर सप्ताह सभी की डॉक्टर्स द्वारा मेडिकल जांच की जाती थी। बीमार होने पर डॉक्टर को तुरंत बुलाया जाता था ।ओल्ड एज होम में एक कॉमन रिक्रिएशन हॉल था जिसमे बड़ा टीवी लगा हुआ था जहां सभी बुजुर्ग मिलकर टीवी देखा करते थे। साथ ही यहां बुजुर्गो के मनोरंजन हेतु कई इंडोर गेम्स जैसे कैरम, चेस, टेबल टेनिस आदि की सुविधा भी थी। एक लाइब्रेरी भी थी जिसमें अखबार और कुछ पत्रिकाएं आदि आती थीं।बुजुर्ग लोगों के सुबह शाम घूमने के लिए सामने ही एक पार्क भी था जहां वे लोग सुबह शाम घूमने के लिए जाते थे। सभी कमरों में भी टीवी की सुविधा थी। कुल मिलाकर यहां बुजुर्गो को सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं।
राम गोपाल जी एक सरकारी अधिकारी के पद से दस वर्ष पूर्व सेवा निवृत हुए थे। उनकी पत्नी भी एक सरकारी स्कूल से अध्यापिका के पद से सेवा निवृत हुई थी।जिनका दो वर्ष पूर्व देहांत हो चुका था। उनकी खुद की अच्छी खासी पेंशन आती थी ।पत्नी की भी फैमिली पेंशन आती थी। इसलिए वो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नही थे। उनके एक बेटी थी शालिनी जो शादी के बाद अपने परिवार के साथ बड़ौदा में एक संयुक्त परिवार में रहती थी। एक बेटा था संजय जिसके साथ वो रहा करते थे।संजय बैंक में अधिकारी था। संजय की पत्नी मालिनी भी बैंक में अधिकारी थी। दोनों की लव मैरिज हुई थी। संजय का एक बेटा अमेरिका में मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी करता था। उसका विवाह भी पिछले वर्ष उसके साथ ही काम करने वाली लड़की के साथ हुआ था। संजय की एक बेटी थी जो दिल्ली के किसी कॉलेज से एमबीए कर रही थी।
राम गोपाल जी को यूं घर में कोई परेशानी नही थी। उनके अपने कमरे में सभी सुविधाएं थी जैसे पलंग, अलमारी, टीवी, पंखा, एसी, टेबल , कुर्सी आदि। समय पर खाना, दवाई आदि मिल जाती थी। जब जरूरत होती थी तब डॉक्टर को भी दिखा दिया जाता था। खाना मिलता तो जरूर था पर उनकी पसंद ना पसंद के बारे में उनसे कभी पूंछा नही जाता था। पत्नी के देहांत के बाद कभी उन्हें अपनी पसंद का खाना नसीब नही हुआ था। उनकी कभी हिम्मत भी नहीं हुई कि वो बेटे बहू को कह सके कि बेटा मेरा आज ये खाने का मन है या आज ये बनवा दो। अब तो वो जैसे अपनी पसंद बिल्कुल भूल ही चुके थे। इतना सब कुछ भी ठीक था पर सबसे ज्यादा उन्हें अकेलापन काटता था। पोती दिल्ली में रहती थी।
बहू बेटे नौकरी पर चले जाते थे और शाम को देर से ही घर आते थे।सुबह भी वो लोग भाग दौड़ में ही रहते थे। उनके पास समय ही नहीं था कि वे उनसे बात करें।उनका हाल चाल पूछें या अपना हाल चाल बताएं। पोते पोती का फोन रोज रात को आता था पर पापा मम्मी के पास। कभी कभी ही वो राम गोपाल जी से फोन पर बात करते थे वो भी केवल औपचारिकता निभाने जैसी। वो दिन भर अकेले रहकर ऊब जाते थे। टीवी भी कितना देखें मोबाइल भी कितना चलाएं। बेटी से जरूर दिन में एक बार बात हो जाती थी। जिंदगी यूं ही अपनी रफ्तार से चल रही थी।
संजय अपनी पत्नी और बेटी के साथ अमेरिका में रह रहे अपने बेटे और बहू के पास एक महीने के लिए घूमने गए हुए थे। राम गोपाल जी का भी मन था कि वो भी उन लोगो के साथ अपने पोते के पास अमेरिका जाएं। पर ना तो बेटे ने उन्हें चलने के लिए कहा ना ही उनकी खुद की हिम्मत अपने बेटे से ये कहने की हुई कि” बेटा मैं भी तुम्हारे साथ अमेरिका चलना चाहता हूं”। राम गोपाल जी के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी,वो चाहते तो सभी का अमेरिका घूमने का खर्चा अकेले वहन कर सकते थे। पर उनस”ओल्ड एज होम यानी वृद्धाश्रम।” राम गोपाल जी एक दम सन्नाटे में आ गए थे । ” बेटा अब मैं घर और परिवार के होते हुए भी वृद्धाश्रम में रहूंगा।”
“अरे नही पापा वो वृद्धाश्रम नही है वो ओल्ड एज होम है। दोनों में बहुत फर्क है। वहां आपको घर जैसी सभी सुविधाएं मिलेंगी। अच्छा खाना, टीवी, एसी ,पलंग सब कुछ अच्छा है वहां। सिंगल रूम लिया है आपके लिए।डॉक्टर आदि की भी सुविधा है। वहां आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।आप यहां घर में अकेले कैसे रहेंगे। हमको वहां आपकी चिंता लगी रहेगी।दीदी के भी बच्चों के इम्तिहान हैं वरना वो यहां आ जाती। और फिर एक महीने की ही तो बात है।”आखिर वही हुआ जो बच्चे चाहते थे। बच्चे अमेरिका चले गए और वो बड़े बेमन से इस ओल्ड एज होम में आ गए। ओल्ड एज होम का पूरे महीने का शुल्क राम गोपाल जी ने खुद ही भरा था।
एक दो दिन तो राम गोपाल जी को यहां बहुत बुरा लगा। वो अपने कमरे में पड़े रहते थे। फिर धीरे धीरे उन्होंने बाहर निकलना शुरू हुए । अन्य बुजुर्गो से धीरे धीरे जान पहचान होने लगी, बात चीत होने लगी। फिर योगा में जाना शुरू हुआ, पार्क में जाना शुरू हुआ। खाने के बाद वो रिक्रिएशन हॉल में जाकर अन्य बुजुर्गो के साथ बैठकर टीवी देखने लगे ,कैरम खेलने लगे। कभी अन्य बुजुर्गो के साथ बैठकर गप्पे मारते , कभी अखबार और पत्रिकाएं पढ़ते। जल्दी ही वो सबसे घुलमिल गए थे। अन्य बुजुर्गों से बात करने पर उन्हें पता चला कि सब की लगभग उनके जैसी ही कुछ कहानी थी। उनमें ज्यादातर पेंशनधारी ही थे। किसी के बच्चें उन्हे रखते नही थे , किसी के बच्चे बाहर रहते थे तो किसी के बच्चे थे ही नहीं। कुछ उनकी तरह अस्थाई रूप से रहने आए हुए थे।
इस तरह राम गोपाल जी आराम से गुजरने लगे, दिन कब निकलता पता ही नही चलता था। जब वो घर में रहते थे तो उन्हें अकेलापन सालता था। दिन भर खाली बैठे बीमारी के बारे में ही सोचते रहते थे। तरह तरह के वहम होते रहते थे। कभी लगता हार्ट में दर्द हो रहा है कहीं हार्ट अटैक ना आ जाए।कभी लगता हाथ पैर सुन्न हो रहे हैं कही लकवा ना मार जाए। कभी लगता गले में दर्द हो रहा है या पेशाब में जलन हो रही है कही कैंसर तो नही है। दिन भर तरह तरह के बुरे ख्याल रहते थे। पर यहां आकर तो उन्हें कभी बीमारी के बारे में सोचने का ख्याल तक नहीं आया। उनके जीवन में एक नया उत्साह सा आ गया था। देखते देखते ही कब एक महीना निकल गया पता ही नहीं चला। जब कल संजय का अमेरिका से फोन आया कि हम कल यहां से रवाना होंगे और परसों तक इंडिया आ जायेंगे तब इन्हें पता लगा कि एक महीना कैसे पंख लगा कर उड़ गया। आज शाम को ही संजय का फोन आया था कि “पापा हम घर आ गए हैं ।अभी हम लंबे सफर से थके हुए हैं।इसलिए मैं आपको लेने आज नही आ पाऊंगा।कल दोपहर तक मैं आपको लेने आऊंगा। आप अपना सामान वगैरह पैक करके तैयार रहना।”
रात हो चुकी थी। राम गोपाल अपने पलंग पर लेटे हुए थे। पर उनकी आंखों में नींद का नामोनिशान तक नही था। मन में विचारों के झंझावात चल रहे थे। कल बेटा आयेगा मुझे लेने। घर जाकर फिर वही जिंदगी शुरू हो जाएगी। वही कमरा, वही टीवी, वही पलंग, वही अकेलापन।ना कोई बात करने वाला ना कोई कुछ पूछने वाला ना कोई सुनने वाला। किसी से बात करने तक के लिए मैं फिर तरस जाऊंगा। कल ये ओल्ड एज होम छोड़ना होगा। कल इन सब बुजुर्ग दोस्तों से बिछड़ना पड़ेगा। फिर ना ये दोस्त होंगे ,ना कैरम होगा ना एक दूसरे के साथ हंसना बोलना होगा। ना पार्क में मिलकर घूमना होगा ना साथ मिलकर खाना होगा। ना साथ में योगा करना होगा । उनकी सारी रात यूं ही सोचते सोचते निकल गई। क्या करूं क्या ना करूं।
आखिर उन्होंने दिल को कड़ा करके निर्णय ले ही लिया कि मुझे अब अपने घर वापस नही जाना है । अपनों से तो ये पराए लोग अच्छे हैं। एक दूसरे के सुख दुख में हारी बीमारी में एक दूसरे साथ देते हैं। ये लोग पराए होकर भी बिल्कुल अपनों जैसे हैं । और एक मेरे अपने है जिन्हे मुझसे बात करने की, मेरा हाल चाल जानने की, मेरी पसंद ना पसंद जानने की ना तो फुरसत है ना ही कोई दिलचस्पी है। पराए अपनों से तो अपने पराए लोगों के बीच रहना अधिक उचित है। निर्णय ले चुकने में बाद अब वो अपने को काफी हल्का महसूस कर रहे थे। उन्होने अपने मन को कड़ा कर लिया और मोबाइल पर अपने बेटे संजय का नंबर मिलाने लगे। उनके चेहरे पर धृढ़ता के भाव थे।
प्रदीप गुप्ता,अजमेर मोबाइल –9461324842