तेरे बिना सूना सूना
सुन मेरे प्यारे कृष्णा।
वृंदावन तुझे पुकारे
गोपी तेरी राह निहारे
सब बनी अब जोगन
कब आओगे मोहन।
*
मन में सोच रही राधा
जीवन क्यों बची आधा।
सखियों को क्या बताऊँ
उर चैन कैसे मैं पाऊँ
नीरस लागे अब जीवन
कब आओगे मोहन ।
*
झूले पर गए बागों में
मेहँदी रच गई हाथों में
बदरा उमड़-घुमड़ आये
गरज गरज हमें डराये
मस्ती में छेड़ जाए पवन
कब आओगे मोहन |
*
बहारों ने ली जो अंगराई है
तेरे प्रेम की ही गहराई है
गेसुएँ निगोरी चूमें गालों को
समझाऊँ कैसे मतवालों को
प्राण तजूं अब मैं बिरहन
फिर देख न पाओगे मोहन
कहो कब आओगे मोहन |
पूनम झा ‘प्रथमा’
कोटा , राजस्थान