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वरिष्ठता पाने के हथकंडे-पूनम

“हैलो, नमस्कार जी” संचालिका महोदया ने कहा । “नमस्कार, मेरी आवाज ठीक से आ रही है ?” संध्या ने उत्तर में कहा ।
“हाँ हाँ आ रही है ।”
सफर से थकी संध्या घर का काम जल्दी-जल्दी से निपटाकर 3 बजे गूगल मीट पर लघुकथा संगोष्ठी के लिए बैठी थी और आयोजन के लिंक से जुड़कर संचालिका से वंदन अभिनंदन कर रही थी। गोष्ठी तीन-चार लोगों का ही था ।
अध्यक्ष महोदय और एक रचनाकार भी जुड़ गए ।
वंदन अभिनंदन के बाद आयोजन का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुई ।
फिर लघुकथा और रचनाओं पर चर्चा हुई।  अध्यक्ष विनोद जी कह रहे थे कि “आजकल लोग स्वयं ही खुद को वरिष्ट साहित्यकार मान लेते हैं और दूसरे की रचनाओं की समीक्षा में कमियां ही कमियां निकालते रहते हैं । इसीलिए मैं किसी आयोजन में शामिल नहीं होता हूँ ।”
संचालिका महोदया उनकी बातों में “हूं..हूं..” कहकर हामी भर रही थी ।
दरअसल ये आयोजन विनोद जी ही करवाते हैं । जो प्रतिदिन अलग-अलग रचनाकार को बुलाते हैं ।
फिर परिचय से आगे का कार्यक्रम शुरु हुआ ।
“आप क्या करती हैं संध्या जी ?” अध्यक्ष महोदय का सवाल।
“मैं एक गृहिणी हूँ ?”
“साहित्य में रुचि कब और कैसे हुई ?”
“वैसे तो साहित्य में रुचि छठी-सातवीं से ही थी, किन्तु शादी के बाद घर गृहस्थी में उलझ गई। लेखन छूट गया ।” संध्या कह रही थी -“23-24 साल के बाद जब बच्चे बड़े हुए और अपनी-अपनी रह पकड़ लिए मतलब पारिवारिक कुछ जिम्मेदारियों से मुक्त हुई तो मैंने पुनः लेखन शुरु किया ।”
“मतलब साहित्य आपके लिए टाईम पास है ?”
“ऐसी बात तो नहीं है।”
“अभी आपने कहा तो कि जब जिम्मेदारियों से मुक्त हुए तब समय बिताने के लिए लेखन शुरु की ।”
“मुझे लगता है आदरणीय, गृहिणी की जिम्मेदारियों को आप बहुत कमतर आंक रहे हैं । वैसे तो मैं यहाँ भी अभी आने से मना की थी, क्योंकि मेरे पास अभी समय नहीं था लेकिन संचालिका महोदया के विशेष आग्रह पर समय निकाल कर मैं आ पायी हूँ ।”
“बात तो वही हुई कि आपके लिए साहित्य टाइम पास मुंगफली की तरह है ?”
“साहित्य में हम क्या लिखते हैं यही निर्भर करता है साहित्य के भविष्य के लिए, ना कि कब और क्यों लिखते हैं । इतना ही नहीं आप एक गृहिणी की जिम्मेदारी को बहुत कम आंक रहे हैं ।”
“संध्या जी सर का कहने का ये मतलब है कि…” संचालिका बीच-बचाव करते हुए कहने की कोशिश की, लेकिन संध्या ने उनकी बातों को अनसुना करते हुए कहा “मुझे लगता है कि आप जो सभी को बुला-बुलाकर सबकी रचनाओं और रचनाकारों की समीक्षा करते रहते हैं , उससे पहले आपको एकबार अपनी समीक्षा भी करवा लेनी चाहिए।”
फिर गूगल मीट के लेफ्ट बटन को दबा दिया संध्या ने ।

पूनम झा ‘प्रथमा’ कोटा

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One comment

  1. बहुत बढ़िया 👍🏻

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