सुनाती हूं एक किस्सा
तुम्हें सुनना ध्यान से ,
बात एक बार की है,
गई थी मैं भी कहीं
मिला था कोई मुझे
अजनबी की तरह
वह मुझे देख रहा था ,
दीवानों की तरह
सुनाती हूं एक किस्सा
तुम्हें सुनना ध्यान से ,
देखा
मैंने जब उसको तो,
नजरें झुका ली उसने ,
चेहरा था खामोश मगर ,
दिल में उफान था उसके ,
मन ही मन मुझको मनन करने लगा
मनचलों की तरह ,
सुनाती हूं एक किस्सा
तुम्हें सुनना ध्यान से ,
बात जब हुई शुरू फोन से
लगा मुझको भी कुछ ऐसे एहसास से ,
इस से रिश्ता है मेरा जन्मो जन्म से,
यह मेरे लिए ही आया है उस चमन से,
मेरे जीवन में जब आया वह फरिश्तों की तरह
आज एक किस्सा सुनाती हूं तुम्हें सुनना ध्यान से
उसकी हर बात मेरे दिल को लगी थी छूने,
उसके एहसास को हर पल मैं भी लगी थी जीने ,
वह मेरी जिंदगी बन गया कब न जाने ,
अब तो दिन- रात देखती हूं उसी उसके ही सपने ,
उसको चाहती हूं मैं हर पल जिंदगी की तरह ,
आज एक किस्सा सुनाती हूं तुम्हें सुनना ध्यान से,
आज एक किस्सा सुनाती हूं तुम्हें सुनना ध्यान से।
अर्चना त्यागी