जब बालक सा व्याकुल
तेरी गोद में छिपकर सोया
उस रात नहीं मैं रोया।
जीवन के दुख सारे भूल
हर्षित मन बरसाये फूल
विस्मृत करके सारे हार
नोन जैसे जल में खोया
उस रात नहीं मैं रोया।
पथ कंटकित नहीं याद किया
स्वर्ग भी नहीं फरियाद किया
गतिमान बन किरणों जैसे
भार दर्द नहीं मैं ढोया
उस रात नहीं मैं रोया।
स्वर्णिम सी धीर छाया
छोड़ जगत की मोह माया
प्यासी धरा पर सोम बन
हर्षित वर्णित मैं जोया
उस रात नहीं मैं रोया।
जीवन बगिया अब महका
ज्वार कोई उर में दहका
नव जीवन सा ले आकार
मधुमय बीज बताए बोया
उस रात नहीं मैं रोया।
डॉ. वीरेन्द्र प्रसाद पटना बिहार