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शिक्षक दिवस के अवसर पर साहित्य सरोज पत्रिका द्वारा आनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें भारत के विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षकों को गोपाल राम गहमरी शिक्षक सम्मान 2023 एवं साहित्य सरोज शिक्षक को सम्मानित किया गया। गहमर वेलफेयर सोसाइटी एवं साहित्य सरोज पत्रिका द्वारा शिक्षक सम्मान के लिए चयनित शिक्षक/शिक्षिकाओं की सूची।
श्री राकेश कुमार सिंह लकी कम्पोजिट विद्यालय, गहमर, गाजीपुर
श्रीमती अर्चना तिवारी, प्राइमरी पाठशाला करमहरी, गाजीपुर
डॉ. संतोष कुमार मिश्रा, विद्या देवी जिन्दल स्कूल, हिसार, हरियाणा।
श्री संजय कुमार सिंह प्रा0वि0चौकठा नरवर,उरुवा, प्रयागराज
श्रीमती प्रतिभा अवस्थी, उ0प्रा0वि0चौकठा नरवर,उरुवा,प्रयागराज
श्री विवेकानंद पाण्डेय, अग्रसेन इंटर कालेज, चौक, लखनऊ।
श्री अलंकार रस्तोगी, अग्रसेन इंटर कालेज चौक, लखनऊ।
डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ’अनंग’, सहजानंद पीजी कालेज गाजीपुर
डॉ. अनिता सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली
श्री प्रवीण कुमार कम्पोजिट विद्यालय बहुअरा गाजीपुर
डॉ. अर्चना त्यागी
आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
इस अवसर पर भारत के विभिन्न प्रदेशों से कवयित्रीयों द्वारा काव्यपाठ एवं लघुकथा का वाचन भी किया गया।
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शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई डी.चित्रा भोपाल की रचना स्त्री
बरगद सी अटल खडी स्त्री
कई विपरीत मौसम देखें ।
झुलसते मन देखें सावन मे
बसंत में बारिशे देखी मन मे।
अपने पराए भेद न जानती
समर्पित रहती वह जीवन मे।
सुख दुख का बसेरा सदा ही
बसा रहता उसके आंगन मे।
गंगाजल सा मन रखती और
निर्मल,निश्चल रहती जीवन मे।
नही चाह उसे कुछ पाने की
ना कपट ना द्वेष है मन मे।
छोटी सी एक ख्वाहिश बाकी
रहती उसके नन्हें से मन मे ।
बस प्रिय मै तुम कहलाऊं
और तुम मै,जन-जन मे ।
स्थान हृदय में दो तनीक सा
धड़कन बन धड़़कती रहुं मन में।
नही चाह महलों की मुझको
बसी रहुं तुलसी बन आंगन मे।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी,साईंखेड़ा नरसिंहपुर की रचना आदर्श
गुरु के आदर्शों को अपनाओ जीवन में।
शीतल सुषमा सौरभ महकाओ तन मन में।
उंगली पड़कर चलना माता ने सिखाया है,
गिर करके फिर उठना पिता ने ही बताया है,
जलाया दीपक गुरु ने अज्ञान अंधेरे में।
गुरु की यदि कटु वाणी हृदय में चुभ जाए,
गुरु का दंडित करना मन में यदि खाल जाए,
जीवन तेरा सोना है चमकेगा तपाने में।
धनार्जन हेतु शायद परदेस में जाना हो,
पिता मात मित्र सारे कोई संग न तेरे हो,
विद्या ही साथी है घनघोर विपत्ति में।
करोगे नाम रोशन जग में तुम भारत का,
सपना हम सबका है आशीष है गुरुवार का,
तेरा नाम लिखा होगा इतिहास के पन्नों में।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई भोपाल से सुधा दुबे की रचना नई पीढ़ी।
बढ़िया पढ़ाओ चाहे घटिया
चुप्पा बैठी रहती है ।
सच्चा पढ़ाओ चाहे झूठा
कुछ भी नहीं कहती है।
समझाओ या लिखाओ
कोई तर्क ही नहीं है।
पढ़ाओ मत पढ़ाओ
कोई फर्क ही नहीं है।
फिर भी तो पढ़ती हूँ
रोटी जो पाती हूँ।
मजे मजे बेसुरे में
गाती ही जाती हूँ।
कहाँ छुप गई लहरें
इस नीली झील की।
कहाँ छुप गई लो
मेरी कंदील की ।
पैसे हैं गोटी है
लेकिन इस खेल में
सांप है ना सीढ़ी है
यह कैसी नई पीढ़ी है।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई दीपा टाक जोधपुर की रचना गुरु की महिमा
माना,मां ने मुझे बोलना सिखाया,
पर बोलना क्या है?
यह तो गुरु ने सिखाया।
मानामां ने चलना सिखाया,
पर किसी राह चलना यह तो गुरु ने सिखाया।
मानामां ने बहुत कुछ सिखाया,
पर पहलाअ, आ,तो गुरु ने सिखाया।
मानामां ने मुझे विश्वास सिखाया,
पर आत्मविश्वास तो गुरु ने सिखाया।
मानामां ने मेरी सूरत को संवारा,
पर सीरत को सवारनातो गुरु ने सिखाया।
मानामांने धर्म, कर्म को सिखाया ,
पर इनका मर्म तो गुरु ने सिखाया।
माना मां ने सही,गलत में फर्कसिखाया,
पर सही का देना साथ तो गुरु ने सिखाया ।
मानामां ने देना, लेना सिखाया,
पर व्यवहार तो गुरु ने सिखाया।
मानामां ने मुझे जीवन दिया,
पर जीना तो गुरु ने सिखाया
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई दीपा टाक जोधपुर की दूसरी रचना गुरू
गुरु बिना ज्ञान ना आए।
गुरु बिना ध्यान ना आए ।
अंधियारे उजियारे का,
गुरु बिना भानना आए।
आप चढ़े दो ही सीढ़ी ,
शिष्य को पांच चढ़ाए ।
उसकी उन्नति देख देख,
गुरुवार मनहरसाए।
अज्ञान रूपी अंधियारी रात में,
गुरुवर ज्ञान का दीप जलाए।
कांटो भरी राह में,
गुरुवर अनुभव के फूल खिलाए।
भाव विहीनबंजर मन में,
गुरुवर प्रेम सावन बुलाए।
सही गलत के फेरमें फँसता,
गुरुवर विवेक की राह बताएं।
गुरु बिना ज्ञान ना आए।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई कुमकुम कुमारी “काव्याकृति” की रचना हां मैं एक शिक्षक हूं।
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
शिक्षक होने का दंभ मैं भरता हूँ।
राष्ट्र निर्माता होने पे गर्व मैं करता हूँ।
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
यह सच है कि मैंने,
बच्चों को ख़ूब पढ़ाया।
पढ़ा लिखा कर उन्हें
डॉक्टर औऱ इंजीनियर बनाया।
पढ़े लिखे लोगों से इस जहां को सजाया।
पर क्या सच में उन्हें इंसान बना पाया ?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा…….
शिक्षक हूँ , शिक्षा देना काम है मेरा ।
मैंने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया।
बच्चों को ABCD और वर्णमाला
ख़ूब रटवाया।
पर क्या सच में उन्हें शिक्षित कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा ,
यह झूठा अभिमान है मेरा……
गणित के शिक्षक होने की तो
गजब शान है मुझे।
अपने विषय का विशेषज्ञ होने
का अभिमान है मुझे।
मैंने बच्चों को गणितीय
फ़ॉर्मूला व ट्रिक्स ख़ूब सिखाया।
पर क्या आत्मा को परमात्मा से ज…
इस अवसर उन्होनें अपनी दूसरी कविता समाधान भी श्रोताओंं की सुनाया।
माना कि बहुत है मुश्किलें,
मत कर तू बखान।
कर सको तो कर लो,
इन मुश्किलों को आसान।
कमियों को गिनाना,
होता बहुत आसान।
ढूंढ सको तो ढूंढो,
इन कमियों का निदान।
समस्याएँ अनगिनत हैं,
मत सोच हो परेशान।
सोच सको तो सोचो,
इसका तुम समाधान।
अधिकारों की चर्चा,
करता सारा जहां।
पर कर्तव्यों के पथ से,
क्यों अनभिज्ञ है इंसान।
वैमनस्यता भुलाकर,
करें सबका सम्मान।
नवयुग के निर्माण में,
हो अपना योगदान।
ऐ कलम तू उठ जरा,
लिख ऐसी दास्तान।
जिसे पढ़कर आ जाए,
मुर्दों में भी जान।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई आगरा से प्रियंका की रचना शिक्षक – एक शिक्षक का कार्य सिर्फ किताबो का ज्ञान देना नहीं होता बच्चों में अच्छे आचरण का निर्माण करना भी होता है। उनके कच्ची मिट्टी के समान ह्रदय को अच्छे संस्कारो से भरना भी होता हैं। शिक्षक की दी हुई छोटी छोटी सीख हमारे जीवन का मूल्य हमें समझाकर हमारे जीवन को मूल्यवान बनती हैं। फिर चाहें हो वो हमारी पहली गुरु हमारी माँ जो हमें बोलना और चलना सिखाती हैं या हो हमारी प्यारी पहली मैडम जो हमें लिखना हाथ पकड़ कर सिखाती हैं या हों हमारे दिलों में अपने मैथ के सवालों का ड़र रखने वाले । सबने हमको कुछ ना कुछ सिखाया था। मैडम ने सिखाया कि जब तक छोटे हो सबके प्यारे दुलारे हो मैथ के अध्यापक ने सिखाया जिंदगी में जैसे जैसे बड़े होते जाओगे जिंदगी उतनी ही मुश्किल होती जाएगी। पर तुमको घबराना नहीं हैं। अपनी बुद्धि और विवेक से काम लेके अपने जीवन के सवालों को सुलझाना हैं। अपने गुरुओ की दी हुई सिखो से अपने जीवन कि नाव को पार लगाना हैं। कभी ना किसी का अपमान करना किसी से ना ईर्ष्या, द्वेष की भावना को रखना हैं। किसी को रास्ता ना दिखा सको तो उसके रास्ते में गढ्ढा भी नहीं खोदना हैं। क्यूंकि कर्मा लौटकर हमेशा आता हैं इसलिए हमेशा अच्छे कर्मों को ही करते रहना हैं। अपने गुरु की इन बातों को तुमको सदा ही याद रखना हैं।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई पूनम झा ‘प्रथमा’ की रचना कोटा कोचिंग – पवन कोचिंग से रूम में आकर मोबाइल देखा तो पापा का 14 मिस काल । वो समझ गया कि कोचिंग से मेरे टेस्ट के रिजल्ट का मैसेज पापा को मिल गया होगा और वो इसीलिए फोन मिला रहे होंगे । पवन खुद ही पाँच – छ: दिन से अपने टेस्ट को लेकर ही परेशान है । पवन मन ही मन –” आखिर मैं क्या करूँ मैं इतनी तैयारी के साथ टेस्ट देता हूँ फिर भी बैच ऊपर नहीं आता वही तीसरे चौथे बैच में रहता हूँ । एक साल हो गए । अब फिर फी जमा कराना होगा । फिर से लोन लेना होगा पापा को । उनलोगों ने मुझसे बहुत उम्मीदें लगा रखी है और मेरा क्या होगा मुझे खुद मालूम नहीं । ” उसी समय फिर फोन आ गया —-” हैलो , पवन ये क्या हो रहा है ? इस बार तो तुम्हारी रैंक और पीछे चली गई । तुम किसी गलत संगति में तो नहीं पर गए हो ? तुम्हें मैं अकेला कमरा इसीलिए दिला रखा हूँ, जिससे तुम्हें पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो । फिर भी तुम …?” एक सांस में बोलते जा रहे थे पवन के पापा —” हाँ तो इस तरह चुप क्यों हो गए । अच्छा चलो ये बताओ कि फी जमा करने की अंतिम तारीख क्या है ? मकान मालिक से कोई परेशानी तो नहीं है ? ” पवन –” नहीं कोई परेशानी नहीं है । फी जमा करने की अंतिम तारीख मैं कल पता करके बता दुंगा । ” ” अच्छा लो मम्मी से बात करो ” ” हैलो पवन फोन जल्दी उठा लिया कर बेटा, चिंता हो जाती है । “–पवन की माँ बोली ।पवन –” जी ठीक है । अच्छा मैं अभी फोन रखता हूँ ।”…..कहकर पवन फोन रख दिया ।
पवन सोचने लगा –” अब फी नहीं जमा करूँगा , मगर पापा को क्या कहूं ? मैं उनकी उम्मीद को पूरा नहीं कर पाऊंगा ऐसा लगता है । फिर मैं ..?? कम से कम मझ पर पैसे तो नहीं खर्च होंगे ” इसी कश्मकश में पवन बैठा रहा खाना खाने भी नहीं गया । पंखा देखा और उसमें फंदा लगाकर नीचे स्टूल रख दिया और स्टूल पर चढ़कर फंदा गले में डाल ही रहा था कि –मकान मालकिन आंटी की आवाज सुनाई दी वो अपने बेटे से कह रही थी — “बेटा गोलू खाना खा लो फिर कहीं जाना ” । पवन के आँखों के सामने अपनी माँ की तस्वीर आ गई, जो हमेशा कहती है ‘तू मेरा संसार है ।’फिर सोचा –“मेरे जाने के बाद मम्मी क्या करेगी ?” आँखें भर आयी और गले से फंदा निकालकर –” नहीं। “–कहकर स्टूल से नीचे उतर गया । ऊपर मकान मालिक की टीवी में गाना बज रहा था ‘हिम्मत न हार, ओ राही चल चला चल ।’
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई जनक कुमारी सिंह बघेल जी की रचना शिक्षा
शिक्षा सीख सिखाती है, जीवन पथ दिखलाती है।
उथल पुथल के भव निधि में, बन नाविक पार लगाती है।।
उठे ज्वार भाटा जीवन में, प्रज्ञा पथ दिखलाती है।।
मझधार में मन माझी गर, तृण विवेक पकड़ाती है।।
अँधियारे पथ पर भी, ज्ञान प्रकाश दिखाती है।।
चतुर अगर भव नाविक हो, शिखर लहर चढ़ाती है।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की गई जनक कुमारी सिंह बघेल जी की रचना शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा
जग को आलोकित करता,पाप ताप तम को हरता।
दया शील शरसाता शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।
सिद्धांत सहज सिखलाता है, व्यवहार की बात बताता है।
नैतिक जल बरसाता शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।
जिज्ञासा की भूमि खोदकर, बुद्धि बीज अन्त: में बोकर,
ज्ञान फसल उगाता शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।।
बाल सुलभ फुलवारी में, विविध पुहुप हैं क्यारी में।
स्नेह सुगंध बहाता शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।।
स्वत: सूर्य सा तपता है, सुधा शशी सा भरता है,
प्राज्ञ जड़ी पिलाता शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।।
शिक्षक शिक्षा की अभिलाषा।।