कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता-04
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अंधकार की कालिमा को चीरकर
कतरा-कतरा हटाकर…
जूझता हुआ चमकीला सुनहरा सूर्य
मानो देता हुआ कोई …
लुका- छिपी की खेल में मीटी
खोल दे झट सिहरकर
अपने नयनों पर बँधी पट्टी…
और धरा कहे उससे… मुस्कुराकर
‘ तू मेरी जिंदगी है…’।
नीले नभ के असीम विस्तार को
नापने की उत्कट चाह में
भिन्न आकृतियां बनाकर
उड़ान के संघर्ष को सहज बनाते पक्षी।
प्यूपा की सख्ताई को संघर्ष-पूर्वक तोड़कर
पँख सुखा-फटफटा रंग बिखराने को तैयार…
फूलों संग झूमती-बतियाती तितली।
कहे हवा से … खिलखिलाकर…
‘तू मेरी जिंदगी है…’।
अपने स्त्रोत से उमड़कर
पहाड़ व मैदान में ज़रा ठिठककर…
तटों से संवाद की चाह तज कर
समन्दर से मिलन की कामना में
निरंतर प्रवाह-मान
नदी की लहरों का संगीत
कहता संघर्ष से… हरहराकर…
” हां, पल-प्रतिपल संघर्ष…”
‘तू मेरी जिंदगी है…’!
डॉ इन्दु गुप्ता 348/14, फरीदाबाद-121007, हरियाणा मोबाइल 9871084402 ईमेल: guptaindoo@yahoo.com