गोपालराम गहमरी पर्यावरण सप्ताह 30 मई से 05 जून में आप सभी का स्वागत है* *आज दिनांक 01 जून को आनलाइन कार्यक्रम के तीसरे दिन चित्र पर कहानी*
मुनिया प्यास के कारण रोते रोते सो गई थी।विगत दो दिनों से घर में पानी नहीं था। फलत: खाना भी दो दिनों से नहीं बना था।उपर से प्रचंड गर्मी।और छत के ऊपर आ कर सूरज दादा का समस्त मानव जाति से सवाल, ” कैसा लग रहा लोगों ” मुनिया जगी तो पूरे घर में माँ- पिताजी कहीं नहीं दिखे। विषम परिस्थितियों में जीती नन्ही मुनिया समझ गयी कि वो पल- पल जल की तलाश में हैं. । बेचैन और परेशां मुनिया ने सोचा कि कुछ प्रयास वह भी करे। इतना तो वह समझती थी पानी मिट्टी के नीचे ही मिलेगा। वह रसोई की तरफ गई तो उसे एक चाकू दिखा। उसे लेकर वह बाहर आ गई।
बाहर फैक्टरी का काला धुआँ प्रदूषण फैला रहा था। इसी कारखाने ने तो इस क्षेत्र में पानी का दोहन किया है और नदी के पानी में अवशिष्ट प्रवाहित उसे जहरीला बनाया है। अच्छा हुआ कि वायु प्रदूषण से बचने के लिए उसने मास्क पहन लिया था। मुनिया ने नदी के किनारे बालू को चाकू से खोदना शुरु किया। नन्हें कोमल हाथ अपनी शक्ति के अनुरूप परिश्रम कर रहे हैं।मुनिया को आशा है कि कुछ तो पानी निकल ही आएगा। मुनिया यह भी सोच रही है कि प्रकृति को बचाने के लिए उसे ही अब कुछ करना होगा।मुनिया इस स्थिति में भी आशा से लबरेज है।
राजेश पाटलिपुत् 94302 51344