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चित्र पर कहानी में -किरण बाला

गोपालराम गहमरी पर्यावरण सप्ताह 30 मई से 05 जून में आप सभी का स्वागत है* *आज दिनांक 01 जून को आनलाइन कार्यक्रम के तीसरे दिन चित्र पर कहानी

समर्थ लगातार चलता ही जा रहा था… पसीने से लथपथ , उसकी गाड़ी चलते-चलते अचानक रूक गई थी। उसने बोनट खोल कर देखा तो उसमें से धुआँ निकल रहा था । दूर-दूर तक पानी का नामो-निशान नहीं था , चारों तरफ सूखी जमीन पर इक्के -दुक्के कंटीले  झाड़ ही नजर आ रहे थे । उसके पास चलने के सिवाय कोई चारा न था । इस उम्मीद में कि कहीं कोई मदद मिल जाए ।  दूर से ही उसे धुएँ के गुबार नज़र आ रहे थे। जो कि वहाँ पर लगी फैक्ट्रियों से निकल रहे थे। जमीन मानो राख का मैदान  बन चुकी थी । सम्पूर्ण दृश्य को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो कोई विकराल दैत्य उसे अपनी गिरफ्त में लेने को है।  नजदीक पहुंचने पर उसने देखा कि एक नन्हा बालक रेत पर पाँव पसारे अपने सामने रखी बाल्टी में अपने कोमल हाथों से उस रेत को भरने का प्रयास कर रहा है।   थोड़ा आगे चलने पर उसे बहुमंजिला इमारतें दिखाई दीं। उसके कदम और तेज हो चल थे। नजदीक पहुंचने पर  उसने देखा कि कुछ मशीननुमा मानव इधर- उधर  घूम रहे हैं। उसने एक व्यक्ति से पूछा, “यहाँ कहीं पानी मिलेगा क्या “? समर्थ हैरान था कि कोई उसे उत्तर क्यों नहीं दे रहा?
“मेरा गला सूख रहा है .. मुझे पानी चाहिए,” उसने अन्य व्यक्ति से दोबारा कहा । ये सब क्या है ? इतने असंवेदनशील इंसान । यह सोचते-सोचते वह एकाएक बेहोश हो गया । जब उसे होश आया तो उसने स्वयं को आधुनिक मशीनों से घिरे हुए एक हॉलनुमा कमरे में पाया । उसके सामने श्वेत वस्त्र धारी एक बुजुर्ग खड़े मुस्कुरा रहे थे । आप कौन हैं ? मैं यहाँ कैसे आया? ये कौन सी जगह है? समर्थ ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले।
मैं एक वैज्ञानिक हूँ और मेरी उम्र लगभग 200 वर्ष है । ये जो तुम मशीनें देख रहे हो न, वो पानी के कैप्सूल बनाने की मशीनें हैं ।पानी के कैप्सूल ! समर्थ को मानो विश्वास नहीं हो रहा था । तुम मानो या ना मानो यही सत्य है,वैज्ञानिक ने कहा। अब धरती पर पानी लगभग समाप्ति के कगार पर है । कहीं-कहीं खोजने पर ही काफी गहराई में जाकर पानी मिल पाता है । जल के अभाव में अधिकतर कीट,जीव-जन्तु, वनस्पति दम तोड़ चुके हैं । पर्यावरण असंतुलन के कारण प्रकृति अपना विकराल रूप धारण कर चुकी है । सूखा, अकाल,  बाढ़, जैविक महामारी, विषाणु संक्रमण, अनगिनत  रोगों का प्रकोप धीरे-धीरे मानव जाति को लील चुका है । जो मानव शेष भी हैं तो वो इतने शिथिल हो चुके हैं कि कार्य करने में असमर्थ हैं। औषधि प्रयोग के कारण बस निर्जीव के समान जीवन यातना को झेल रहे हैं । ये जो मशीनी मानव देख रहे हो न, यही सम्पूर्ण व्यवस्था को सँभाले हुए हैं । यदि जल नहीं है, वनस्पति नहीं है तो फिर शेष जीवित प्राणी क्या खाकर जीवित हैं ! समर्थ के आश्चर्य की सीमा बढ़ती जा रही थी।
जिस प्रकार पानी के कैप्सूल बनाए गए हैं, वैसे ही भोजन की तृप्ति के लिए भी कैप्सूल बनाए जाते हैं जो शारीरिक  जरूरतों को पूर्ण करते हैं । उनसे केवल क्षुधा को ही शान्त किया जा सकता है, शारीरिक चुस्ती, स्फूर्ति और बुद्धि को विकसित नहीं किया जा सकता | (बुजुर्ग व्यक्ति ने जवाब दिया) और वो बच्चा जो रेत पर  बैठा हुआ था … वो कौन था और क्या कर रहा था ? समर्थ ने वैज्ञानिक से पूछा। वो !  वो तो भविष्य है बेचारा ! पानी की खोज में लगा है इस उम्मीद के साथ कि कोई तो उसकी ओर ध्यान दे,उसका साथ दे।  
काश ! मानव ने लापरवाही ना बरती होती, प्रकृति की अवहेलना नहीं की होती, अपने स्वार्थ के लिये उसका दुरूपयोग ना किया होता तो आज परिस्थितियाँ प्रतिकूल नहीं होतीं । (समर्थ मन ही मन सोचने लगा)
“ये लड़का भी न,नींद में न जाने क्या बड़बड़ाता रहता है ? सूरज सिर पर चढ़ आया है, उठना नहीं है क्या ?”
माँ की आवाज से समर्थ की नींद टूट जाती है और वह सोचता है कि शुक्र है, ये केवल सपना ही था ।र जरा सोचो, यदि यह हकीकत होता तो !   –
किरणबाला(चंडीगढ़) 98035 64330

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