कहानी संख्या -17,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,
किसने कहा है, पता नहीं ? पर किसी ने कहा है-” प्यार न जाने जात कुजात, नींद जाने मरघट खाट,प्यास न जाने,धोबीघट घाट।” “प्यार अंधा होता है।” तो लोग किसी अंधे से प्यार क्यों नहीं करते हैं? कोई लड़का किसी अंधी लड़की से प्यार क्यों नहीं करता। क्या सही में प्यार अंधा होता है ? शायद प्यार अंधा होता है। पर सबको पता नहीं चलता है। ये बात केवल प्यार करने वाले ही जानते होंगे या जानते हैं। इन्हीं सब बातों की पड़ताल करने चलिए हम आपको ले चलते हैं। आनंदपुर गांव में। जहां पर हम आप मिल के इस बात की सत्यता ढ़ूढ़ेंगे। क्या सत्य है क्या नहीं ? “प्यार की खुशबू” यह कहानी है आनंदपुर गांव की जहां पर जाति भेद का बाजार खूब गर्म है। तथा कथित ऊंची जाति और नीची जाति। दोनों जातियों के लोग रहने वाले इस गांव में निवास करते हैं। हमेशा किसी न किसी बात को लेकर विवाद होता ही रहता है।
इसी गांव के हैं युवक दीपक और युवती संगीता। दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। साथ-साथ पढ़ते- पढ़ते, न जाने कब दोनों के अंदर प्यार का अंकुर फूट पड़ा। सारी दुनिया से बेखबर दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं। जब दोनों का प्यार पवन चढ़ता है, तब उन्हें ज्ञात होता है कि दोनों दो जाति के हैं एक अगड़ी जाति का तो एक पिछड़ी जाति का। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। दोनों प्यार के उसे शिखर पर पहुंच गए हैं, जहां से पीछे लौटना मुश्किल होता है
। धीरे-धीरे उनका प्यार गांव भर में चर्चा का विषय बन जाता है और अगली पिछड़ी जाति में खींचातानी चलने लगती है। पर दीपक और संगीता है इन जात-पात की अपराधिक तत्वों से जूझने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जातिगत विरोध के कारण दोनों का मिलना जुलना बहुत कम हो जाता है? संगीता के घर वाले उसे समझाते हैं -” देखो बेटी ये हमारे इज्जत का सवाल है। जाति बिरादरी का सवाल है। तुम्हें दीपक से अच्छा लड़का ढ़ूढ़ कर तेरी शादी किसी अच्छे घराने में करेंगे। तुम दीपक का साथ छोड़ दो। समाज में हमारी बड़ी बदनामी हो रही है।” संगीता के पिता जी उसे समझाते हुए बोले।
संगीता बोली_” पिता जी आप किस जाति पाति के चक्कर में पड़े हैं। मैं अब बालिग हो गई हूं। अपना भला बुरा सोचने की समझ है मुझमें। समय आने पर आपकी जाति बिरादरी कोई काम नहीं आने वाली। सब तमाशा देखने वाले और मजा लेने वाले हैं। मैं पढ़ लिखकर कोई अच्छे पद पर न चली जाऊं इसलिए आपकी जाति बिरादरी इस चक्कर में पड़ी है।” संगीता की मां बोली-” बात मान जाओ बेटी। हम तेरे दुश्मन थोड़े ही है। इतने दिनों के हमारे प्यार पर उस दुष्ट के दस दिनों का प्यार। भारी पड़ गया। आज तेरे लिए वही सबकुछ हो गया है। हम लोग कुछ नहीं।” संगीता बोली-” मां आप लोगों का प्यार तो मेरे लिए पहले जैसा ही है और रहेगा। पर मुझे जीवन तो किसी और के संग ही तो बिताना है। आपके साथ तो सारा जीवन रह नहीं सकती। तो मुझे अपने पसंद का जीवन साथी चुनने में इतनी बाधा क्यों।”
“तुझे इतनी समझ नहीं वो हमारी जाति का नहीं है। अपनी जाति में भी तो योग्य लड़के मिल जायेंगे।” मां संगीता को डांटते हुए बोली। ” मां आज जमाना बदल गया सबकुछ अपने पसंद का हो रहा है। हमलोग बहुत आगे बढ़ चुके हैं।” संगीता अपने फैसले पर अडीग होते हुए बोली।एक जोरदार थप्पड़ संगीता के गाल पर।”कलमुहीं तेरे शरीर में इतनी गरमी हो गई है। तू पढ़ने जाती थी या यहीं सब करने जाती थी। अगर मैं जानती तू कुलबोरनी निकलेगी तो मैं तुझे दुनिया में आने ही नहीं देती।” गुस्से में लाल-पीले होते उसकी मां बोली। उधर दीपक के घर का भी यही हाल था। उसे भी चारों तरफ से डांट पड़ रही थी। “कौन सा सुरखाब का पर लगा है उसमें। वो कोई परी तो नहीं है।” मां दीपक को समझा रही थी।
“मां दिल लगाने के लिए परी की जरूरत नहीं पड़ती है। कहा गया है दिल लगा दीवार से तो परी किस काम की।” उसने मां को समझाया। “मां वो योग्य लड़की है पढ़ने में तेज है। हम दोनों मिल कुछ अच्छा करेंगे। तुम देखना। तुम पिता जी को समझाओ जात पात का चक्कर छोड़ें।” दीपक मां के गले लग मनुहार किया।गांव वाले दोनों के परिवार का हुक्का पानी बंद करने की धमकी देते हैं। संगीता का कॉलेज जाना बंद कर दिया जाता है। लेकिन वह पढ़ाई छोड़ने नहीं चाहती है। जबरदस्ती किसी तरह कॉलेज जाती रहती है और पढ़ाई जारी रखती है।अपने बच्चों के प्रति सभी को मोह होता है। दीपक और संगीता के मां-बाप को भी अपने बच्चों से प्यार है लेकिन गांव और समाज के भय से कुछ नहीं कर पाते हैं। बच्चों की परवाह किए बिना गांव वालों की हां में हां मिलाते रहते हैं ।
इधर गांव में जातिगत संघर्ष जारी रहता है। उधर दीपक और संगीता अपनी पढ़ाई में वयस्त रहते हैं। जब उनकी पढ़ाई पूरी होती है। परिणाम आता है तो दोनों अपने-अपने ग्रुप में नंबर वन पर आते हैं। उनका उत्साह दुगुना हो जाता है उसके साथी उन्हें हर वक्त में मदद करने को तैयार रहते हैं। गांव में जातिगत संघर्ष अपने चरम पर आ जाता है। दोनों तरफ से मुकाबले की तैयारी होती है। दोनों पक्ष आमने-सामने एक दूसरे को खत्म करने के लिए तैयार है। तभी दीपक और संगीता बीच में आते हैं और कहते हैं -” अगर आप लोगों की लड़ाई हम दोनों की जान लेकर ही पूरी होगी तो हम मरने के लिए तैयार हैं लेकिन एक बात का आप लोग ख्याल रखेंगे। हमारे मरने के बाद फिर इस गांव में दीपक और संगीता जन्म लेंगे और फिर आप लोग मारियेगा। इस तरह से यह सिलसिला इसी तरह
चलता रहेगा और एक दिन सारा गांव खाली हो जाएगा। ना तो फिर अगड़ी जाती रहेगी ना ही पिछड़ी जाति रहेगी। तब आप लोग किसके लिए लड़ाई करेंगे ?” दोनों जाति से ऊपर उठकर जीने की प्रेरणा देते हैं। धीरे-धीरे सब शांत होने लगता है और सब उनकी बात मानने लगते हैं। फिर उन्हें खुशी-खुशी जीने की इजाजत दे देते हैं। दीपक और संगीता एक दूसरे के हो जाते हैं। सारे गांव से भेदभाव मिट जाता है। आपसी प्यार और सद्भावना चारों तरफ नजर आने लगती है। सारे वातावरण में प्यार की खुशी बिखर जाती है।
दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश” , कोलकाता 9434758093
दिनेश जी को प्रणाम कहानी जोरदार हैं बहुत सुंदर व्याख्या ।।
समाज में ऐसा देखने को नहीं मिलता। कि प्यार कि खुशबू को स्वीकार किया जाएं 🪷🙏🪷👍