कार चलाते-चलाते थकान होने पर मनीष सामने के ही ढ़ाबे पर चाय पिने चला गया I चाय आने तक वह ब्रिफकेस से सिगरेट का पैकेट निकालकर उसमें से एक सिगारेट उसने मूँह में लगाईं और लायटर के लिए जेब टटोलने लगा I शायद वह कार में ही छूट गया था …
Read More »राजा पास हो गया -सुधा भार्गव
एक राजा था बड़ा ही चतुर ! अक्सर वह रात में प्रजा के हालचाल जानने को अकेला ही निकल पड़ता लेकिन भेष बदलकर। भेष बदलने में भी बड़ा कुशल! कभी ग्वाला बन कर जाता तो कभी चूड़ियाँ बेचने का स्वांग रचता। भरे बाजार में आवाज लगाने लगता -दूध ले लो …
Read More »समन्वय की भाषा है हिंदी -सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी के अवसर पर भारत की आत्मा हिंदी देश के भूभागों में वृहद् स्तर पर बोली जाती है। देश की राजभाषा के रूप में स्थापित हिंदी ने देश के विभिन राज्यों के बीच महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य किया है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देश …
Read More »ऐतिहासिक मानव कला है मधुबनी पेंटिंग-सत्येन्द्र कुमार
कलात्मक उत्कृष्टता की सुदीर्घ परंपरा चित्रकला प्राक ऐतिहासिक मानव कला और मनोविनोद की गतिविधियां रही है । प्रागैतिहासिक चित्रकला उच्च पुरापाषाण काल 40000 से 10000 ई. पू. में मिश्रित गेरू का प्रयोग चित्र मानव आकृतियों , मध्य पाषाण काल 10000 से 4000 ई. पू . तक लाल रंग , ताम्र …
Read More »भारतीय सिनेमा अब तक-कौशल
लूमियर ब्रदर्स, एक फ्रेचं आविष्कारक, प्रथम अन्वेषक, फोटोग्राफिक उपकरण के अग्रणी निर्माता, जिन्होंने एक प्रारंभिक कैमरा और प्रक्षेपण तैयार किया जिसे सिनेमैटोग्राफ कहते हैं l सिनेमा की उत्पत्ति सिनेमैटोग्राफ से हुई l 22 मार्च, 1895 को लूमियर ब्रदर्स ने अपनी डेब्यू /पहली शार्ट फ़िल्म “Workers Leaving the Lumière Factory” प्रदर्शित …
Read More »बाल साहित्य कीभूमिका -स्वर्ण ज्योति
आज बाल साहित्य एक संपूर्ण चिंतन या विमर्श का रूप धारण कर चुका है। इसके विविध पहलुओं पर अलग-अलग मंचों से इतनी चर्चा हो चुकी है कि अब इसे एक गंभीर रचना –कर्म के साथ-साथ एक सामाजिक कर्म के रूप में भी स्वीकार किया जाने लगा है । परंतु क्या …
Read More »कैसा बचपन-नीलम सारंग
दस साल का अरनव खीझ रहा था एलेक्सा पर, जब देखो जैसा बोलो वैसा ही करती रहती है । मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा साथ । मम्मी भी ना, कहो कुछ करती कुछ है । खुद के पास तो समय है नहीं और मुझे फ्रेंड भी ढूंढ कर दिया तो यह …
Read More »नारी सशक्तिकरण -डा0 प्रिया सूफी
नारी सशक्तिकरण मुझे सर्वप्रथम एक मूलभूत ऐतराज़ इसी बात पर है कि नारी जोकि स्वयं शक्ति स्वरूपा है , उसके सशक्तिकरण का नारा क्यों कर दिया जाता है ? इस आधुनिक युग में जहाँ हर वस्तु, व्यक्ति, सोच और विचारधारा प्रगति के पथ पर अग्रसर है वहां नारी की शक्ति …
Read More »अथ श्री ओलम्पिक चिन्तनम- रामभोले शर्मा
जनववरी-2023 इस समय टीवी चैनलों पर बड़ी तेजी से काँव-2 जारी है कि हमारा महान भारत आखिर ओलंपिक में अमेरिका,चीन,जापान आदि देशों की तरह स्वर्ण पदक क्यों नहीं जीत पाता?तो सुनो हम किसी से कम हैं क्या?अगर यूज़ एंड थ्रो,मतलब लेथन फैलाने,घूसखोरी,कामचोरी,बेईमानी आदि में कोई अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा करा दी जाए …
Read More »आशा की रोटी
“मत मारो बापू.. . मत मारो, अब कभी नहीं जाऊंगा वहां… माफ कर दो बापू.. माफ कर दो ” मासूम 10 साल का सतिया लगातार हरि प्रसाद से बख्श देने की गुहार लगाता रहा। रो रो कर उसकी आँखें लाल हो गई थीं। डंडे की मार से शरीर बुरी तरह …
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