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जब मैं छोटी बच्‍ची थी- अलका

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 लेख-आलेख विषय- जब मैं छोटा बच्‍चा था (संस्‍मरण) शब्द सीमा (700-1000)

कभी-कभी बचपन की कुछ घटनाएं मानस पटल पर कुछ इस तरह अंकित हो जाती हैं कि लाख चाहो,परंतु इसकी स्मृति धूमिल नहीं होती। ऐसी ही एक घटना मेरी भी स्मृति में वो रात एक चमगादड़ की तरह चिपक कर रह गई है। यह घटना उस समय की है, तब मेरी उम्र लगभग सात या आठ वर्ष रही होगी। मैं , मेरा छोटा भाई, मां, पिता जी के साथ अपने एक करीबी रिश्तेदार की शादी, जो कि हमारे गाँव से थोड़ी दूर मेरठ शहर में थी, वहाँ से लौट रहे थे। हालाँकि सभी ने रात का सफर न करने की सलाह दी, परंतु अगली सुबह मेरी परिक्षा शुरू होने वाली थी। तब न चाहते हुए भी हमनें रात्रि को सफर करना तय किया। रात्रि आठ बजे जब मेरठ शहर से हमनें अपने घर के लिये यात्रा शुरू की थी तब मौसम एकदम साफ था। चाँद बड़ी ही शान से आकाश के ललाट पर दमक रहा था। बस सरपट अपनी मंजिल की ओर दौड़े जा रही थी। मैं खिड़की से झांकती सितारों भरी रात में जैसे चांद का ही पीछा कर रही थी। इस पूर्णिमा के चाँद में भी ना जाने कैसा आकर्षण होता है कि मैं इसकी आभा में बचपन से ही खो सी जाती हूँ। लेकिन अरे……ये क्या…ये काले बादलों ने आकाश को अचानक कहाँ से आ घेरा। अभी तक तो दूर दूर तक भी बादलों का नामोनिशान न था। और फिर क्या….अभी हम लोगों ने अपना आधा सफ़र ही तय किया था…तभी अचानक घनघोर बारिश शुरु हो गई। आज भी मुझे याद है कि रात्रि के लगभग 12 बज गए थे। सभी बसें और यातायात के साधनों को जहां की तहां रोक दिया गया। और जिस बस में हम लोग थे उसमें ज्यादा सवारियां नहीं थी। जो थी उन सबको बस वाले ने बस खराब का बहाना कर हमें बीच रास्ते में उतार दिया।
अब जो तीन चार सवारियां थी, वो जैसे – तेसे अपना इंतजाम करके वहाँ से चलीं गईं। लेकिन हमें हमारे गाँव की तरफ जाने का कोई साधन नहीं मिल रहा था। बारिश तेज होती जा रही थी। बारिश के साथ तूफ़ानी हवाएं भी भयभीत करने लगी थीं । मां, पिता जी ने हम दोनों बहन भाई को कस कर जकड़ रखा था, वो हमारी ढाल बने, अचानक ख़राब हुए मौसम की मार झेल रहे थे। इस भयानक रात का सामना करते हुए हमारा दिल बैठा जा रहा था। उस सूनसान सड़क पर बस हम चार लोग ही थे । किसी भी पल अनहोनी की आशंका से हम सभी काँप रहे थे। तभी अंधेरे में एक परछाई जैसी कोई चीज दिखाई दी, जिसे देखकर मेरी सांसे रुक सी गईं मैंने मां के पैरों के बीच धोती में छिपे हुए, डर से भींची आंखों से देखा कि अभी तो ये एक ही परछाई थी परंतु धीरे धीरे चार लोगों की आकृतियाँ नज़र आने लगीं, जो कि हमारी ही ओर बढ़ती चली आ रहीं थी। ये देखकर मां, पिता जी की साँस गले में अटक गई थी। क्योंकि इन लोगों के हावभाव से साफ पता चल रहा था कि ये चारों ही शराब के नशे में चूर थे।
अब इस भारी बारिश और भयानक रात में हमारी सहायता के लिए कोई परिंदा तक नहीं था वहाँ। हमने एकदूसरे को कस कर जकड़े हुए, लगातार भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि प्रभु आज कुछ चमत्कार कर दो। और हमारी रक्षा करो। जैसे ही ये शराबी लोग भयानक ठहाके लगते हुए हमारे चारो ओर चक्कर लगाने लगे, और जैसे ही हमारी और हाथ बढ़ाने वाले थे, तभी एक बस , पता नहीं कहाँ से हमारे पास आकर रुकी। और बस से एक हट्टा कट्टा व्यक्ति उतरा,रामपुर जाने वालों को बस में बैठने को कहा । जैसे ही हमने अपने गांव का नाम सुना , हम बिना पलक झपके बस में सवार हो गए। मां, पिताजी के चेहरे पर डर, चिंता के भाव अभी भी साफ साफ दिखाई दे रहे थे। उनकी घबराहट,चिंता, परेशानी देखकर मेरी आंखें बरसने लगीं। तभी चालक ने बात शुरू कर दी। उसने बहुत ही आत्मीयता के साथ अपना परिचय दिया और बात आगे बढ़ाई, जिससे मां, पिताजी की जान में जान आ गई। उन्होंने राहत की सांस ली कि अब हम सुरक्षित हैं।
अब मुझे विश्वाश होने लगा था जैसे कोई अदृश्य शक्ति हमारे साथ है और हमारी सहायता कर रही है।और एक अच्छी बात हुई कि बस चालक मेरे पिताजी का पुराना परिचित निकला। मां, पिताजी ने अब राहत की सांस ली।लग रहा था जैसे हमें एक नया जीवन मिला हो। इस बचपन की घटना से महसूस होता है कि प्रार्थना का असर ,चमत्कार घटित होते हैं।और इस प्रत्यक्ष दुनिया से परे एक और दुनिया है ,और ये दुनिया वास्तव में गज़ब सी , अदृश्य शक्तियों की दुनिया होती है।और चमत्कार भी होते हैं। वो कोई चमत्कार ही तो था, कि इतनी काली भयानक रात्रि , मूसलाधार बारिश और दूर दूर तक एक परिंदा भी नज़र नहीं आ रहा था । फिर कोई तो शक्ति थी ,जिसने आकर हमारी सहायता की। और ये सिर्फ मन का भ्रम भर नहीं है, यह एक सत्य घटना है। और इस दुनिया में घटने वाली घटनाओं पर मुश्किल से ही विश्वास होता है। लेकिन अब मुझे इस गज़ब रहस्यमई दुनिया पर विश्वास होने लगा है।

अलका गुप्ता (नई दिल्ली – 110068)
फोन नं. – 8920425146
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