कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4 साहित्य सरोज पेज को लाइक एवं फालो करें, परिणाम व लिंक पेज पर https://www.facebook.com/profile.php?id=100089128134941 rbt तू मेरी जिंदगीअँधेरी राहें हुई उजली जब प्रेम संग – संग चला। जब मिले थे मैं और तुम सागर पर पहली बार लाए थे प्रेम का नजराना बेला का गजरा – हार महका था तब प्यार कम्पित हाथों से गजरा जब तुमने मेरे केश – …
Read More »रावण जिन्दा है
(कविता) रावण जिन्दा है अभी भी ये सच है पुतला जलाकर मान लेता है आदमी रावण मर गया परन्तु घर-घर में हर डगर में कुदृष्टि से फब्तियों की वृष्टि से जबर्दस्ती से बेटियों पर,बहुओं पर, उम्र की बंदिश बिना करता रहा है अत्याचार, अनाचार सदियों से आज तक फिर …
Read More »सरकारी फ़रमान
सरकारी फ़रमान चला है राजा काकुछ भी कहने से पहले पूछो हमसे।पत्रकार हो तो क्या तुम खबरें छापोगे ?सत्ता की तारीफ़ों के इश्तिहार लिखो,जब भी कुछ होते देखो गड़बड़-झालातुरंत वहीं शासक की जय-जयकार लिखो।लिखा यदि कुछ ऐसा कि छवि धूमिल हो,लिखा यदि कुछ ऐसा जो सरकार ना चाहे,तो फिर समझो …
Read More »गीत लिखा
रोया,गीत लिखा,फिर रोया रो गा कर तब सपने बोया। बाँध नींव को जिन रिश्तों से महल बनाए थे अपनों के बिखर गये अब रंग बदलकर बिके हाट में,रख दोनो पे। शेष नहीं पहचान बची है प्राण लगाकर जिसको ढोया। मन बहलाने को जब मैंने ईश्वर का भी लिया सहारा नहीं …
Read More »बचपन” सतीश “बब्बा” बचपन की ओ प्यारी बातें,कैसे भूलूं, तुम्हें बताऊं,वही तो है जीवन सच्चा,बांँकी जीवन व्याधि है तुम्हें बताऊं! नन्हे नन्हे पउंँवा मेरे,अम्मा – बापू के संग जाऊं,चलते – चलते जब थक जाऊंँ,बापू के पीठी चढ़ जाऊंँ ! खेतों की खड़ी फसल में,मैं अंदर गुम हो जाऊंँ,अम्मा को परेशान …
Read More »सुनो जवानों -डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
सुनों देश के वीर जवानों , कर्मचारियों और किसानों । देश भक्ति भाव जो मन में , पहले से भी जादा तानों ।। श्रमिक वर्ग और व्यापारी , विकास धारा से सारे जुड़े । कन्धे से कन्धा मिलाकर , प्रगति पथ पर सभी मुड़ें ।। देश के बालक बालिकायें , …
Read More »तुम से अच्छा कौन है-विनय बंसल
हमारे फेसबुक पेज को लाइक व फालो करें अपनी धड़कन के झूले पर, तुमने मुझे झुलाया।पीड़ाओ को झेला, सहकर पल में उन्हें भुलाया।खुद गीले में सो कर मुझको सूखी सेज सुलाया।जाग जाग कर रात रात भर, अपनी गोद बिठाया।पाला पोषा मुझको तुमने, अपना दूध पिलाया।स्वयं भले भूखी रह जाती, मुझको …
Read More »विकल आखर-रश्मि लहर
अचानक एकनिर्वस्त्र सदी को देखफटने लगता हैस्तब्ध बादलों का मनबढ़ जाती हैरुग्ण वेदना की उलझनलहू चू पड़ता हैपीढ़ियों कीलहुलुहान ऑंखों सेबन्दी बने भावमाथा पीटने लगते हैंबेबसी की सलाखों से।सपनों के खेत मेंदहशत से भरी मिलती हैंकुछ अन-अकुवाई कल्पनाऍं।वर्तमान के कटीले पथ परदाॅंत भींचे टहलती रहती हैसभ्यता भाग्य रेखाओं को कुरेदती हुईविचलित …
Read More »कन-कन में है वास तेरा-डॉ. इन्दु कुमारी
https://www.facebook.com/profile.php?id=100089128134941&mibextid=ZbWKwL साहित्य सरोज पेज का फालो एवं लाइक करें। हे जग के रचयिता स्वामी,कन कन में है बा स तेरा।तुम बिन हूं दुखियारी मैं,अब तो लगाओ पार मेरा। अब करा दे दीदार अपना,मछली जैसी है तरप मेरा।हे नाथ अपनी शरण लगा,कन कन में है वास तेरा। जैसे मेहंदी में छुपी …
Read More »हलवाहा- सतीश “बब्बा”
कंधे पर,धरे हल ,किसान कहें,या हलवाहा! धरती की छाती,चीरता,धूप, वर्षा,जाड़ा सहता! गांव,किसान,मेहनत से,बना भारत! खो सा गया,अब वह गांव,किसान वाला,भारत! मेंड़ बांँधता,पसीने से,लथपथ,किसान!बैलों को,ललकारता,नंगे बदन,हलवाहा!थककर,चकनाचूर,हराई मारकर,बैलों को,सुस्ताने,के लिए,हल रोकता,और,खुद,बरगद के नीचे,महुए की छाया,या आम के,बगीचा में,जाकर,धूप से,बेहाल,छाया पाता है,तब के सुख,का वर्णन,वह खुद नहीं,कर पाया है! वह स्वर्गिक,सुख,अब छूट गया,श्रमेव …
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