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प्रतियोगिता

प्रेमलता यदु की कहानी ऊपर वाला कमरा

प्रेमलता यदु की कहानी ऊपर वाला कमरा

सप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु रविवार “स्वैच्छिक लेखन” अंजना देवी अपने सर्व सुविधायुक्त शानदार कमरे के नरम मुलायम व आरामदायक बिस्तर पर लेटी हुई, ऊपर छत की ओर टकटकी लगाए न जाने कब से बिना पलक झपकाए निहार रही थी. सहसा उनका चंचल मन अतीत के आसमान में उड़ने के लिए अपने …

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साहित्‍य सरोज लेखन एवं मेंहदी प्रतियोगिता के परिणाम घोषित

साहित्‍य सरोज लेखन एवं मेंहदी प्रतियोगिता के परिणाम घोषित

02 अप्रैल को साहित्‍य सरोज पत्रिका की संस्‍थापिका श्रीमती सरोज सिंह की सातवीं पुण्यतिथि पर आयोजित सरोज सिंह लेखन प्रतियोगिता में लेखको ने दिये हुए विषय पर अपने लेख, शीर्षक पर कहानी एवं वाक्‍शं पर अपने विचार लिखें। इस प्रतियोगिता की सबसे मजेदार बात यह रही कि लेखकों ने मेहनत …

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आखिर क्यूं बिगड़ रहा आज हमारा फिटनेस? पूजा

आखिर क्यूं बिगड़ रहा आज हमारा फिटनेस? पूजा

“आखिर क्यूं बिगड़ रहा आज हमारा फिटनेस? “ लोगों को आलस्य इतना घेर लिया है अपनी दिनचर्या में शामिल होने वाली गलत वस्तुओ का प्रयोग करके अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने लगे हैं। अपनी फिटनेस को दरकिनार कर नए रोगों को निमन्त्रण दे रहे हैं। समय की कमी कहें …

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अभिवावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन-राज फौजदार

बच्चे देश की धरोहर होते हैं ।परिवार में आने वाले भविष्य की नींव माता-पिता की उम्मीद की पूंँजी होते हैं ।बच्चों का मानसिक स्तर कैसा है? उसकी रुचि क्या और किस तरफ है? रूचि सब की एक समान नहीं होती कहते हैं –(1)”पूत के पांँव पालने में ही दिख जाते …

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वो रिक्शा-अवनीश

वो रिक्शा-अवनीश

बहुत पुरानी याद आप के साथ बांटना चाहता हूँ, ये याद है बालपन की। ये बालपन भी अजीब है, रहता है हम सभी के अन्तर्मन में, बहुत सी भूली बिसरी व कुछ पत्थर की अमिट लकीर सी खिंची यादों के रूप में।अब तो मैं  भी वरिष्ठ नागरिक की कैटेगरी में …

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बेदर्द दिल -पूजा

बेदर्द दिल -पूजा

अभी हम हवन करके उठे थे हवन में मेरे साथ मेरे पति राकेश दोनों पुत्र लव एवं कुश भी बैठे थे। वह शांति हवन हमने बाबूजी के लिए रखा था। सभी रिश्तेदार मित्र एवं परिचित भी इस अवसर पर आए हुए थे। पूजन हवन के पश्चात भोज का आयोजन किया …

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एक यादगार सफ़र-रागिनी

एक यादगार सफ़र-रागिनी

बात 1999 की है जब मैं पानीपत रहती थी। कटनी मध्यप्रदेश से जाते समय मुझे दो ट्रेन बदलनी पड़ती थी। बहुत ही मुश्किल का सफर होता था । एक बार में मैंने दिल्ली से आगे की जब ट्रेन बदली और दूसरी ट्रेन में मैं चढ़ने लगी।तभी मैंने देखा कि बहुत …

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मेरा गांव मेरा बचपन-अजय

मेरा गांव मेरा बचपन-अजय

“वर्षों पहले पीछे छूट गया वो पुस्तेनी गांव?”कह मिस्टर डिसूजा ने अपनी बात पूरी की तो विस्मृति स्मृति की रेखाएं बरबस ही चेहरे पर खिंच गई। हां अवश्य केबिन में लगे पंखे की खटखट की ध्वनि विचारों में दखल दे रही थी, जिस पर माघमास ने अपना डेरा समेटा तो …

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अभिभावक  की महत्वाकांक्षा में खोता  बचपन-मनोरमापंत 

अभिभावक  की महत्वाकांक्षा में खोता  बचपन-मनोरमापंत 

आज की दुनिया पूर्ण बनने के पीछे पागल है और इसी धुन में दुनियां अवसाद तथा दुःख से गुजर रही है । भारत  जैसे देश में  बच्चों को  पूर्ण बनने की धुन में  अभिभावक  उनका बचपन  स्याह  कर रहे हैं ।  जिससे  आत्महत्याओं  का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। …

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न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा’ मक़बूल शायर राहत इंदौरी साहब की ग़ज़ल का यह मिसरा अपने आप में गहरे अर्थ समेटे बहुत कुछ कहता है।आस और उम्मीद एक ऐसा शब्द है जो इंसान को शिथिल और निष्क्रिय बनाता है। यही आस और …

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