वह एक लाइब्रेरीनुमा कमरा था। मैंने कमरे को हैरत भरी निगाह से देखा। इतनी सारी किताबें किसी के घर पर पहली बार देख रही थी। इतनी किताबें तो पढ़ते हुए कॉलेज की लाइब्रेरी में ही देखी थी।मैंने एक सोफ़े की कुर्सी पर कब्जा जमा लिया। तभी एक छोटी सी बच्ची …
Read More »मनीष की कहानी संशय
बांध वाले रोड पर चलते हुए विमल जी घोष दा के साथ काफी दूर निकल आए थे। सामने गंगा का धवल प्रवाह डूबते सूरज की हलकी धूप में चमक रहा था। घोष दा तर्जनी से उन्हें नदी के दूसरे तट पर पेड़ों की कतारों से निर्मित पृष्ठभूमि को दिखा रहे …
Read More »हनुमान जन्मोत्सव पर सुंदरकांड विशेष-सोनल मंजू
हिंदू पंचांग के अनुसार, हनुमान जन्मोत्सव हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 23 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस बार हनुमान जन्मोत्सव मंगलवार को पड़ने से यह और भी खास हो जाता है क्योंकि माना जाता कि हनुमान …
Read More »वो नया मेहमान-गोवर्धन
आज से पचास साल पहले मेरा दोस्त मेरा मुहँ मीठा कराते हुये बताया कि उसके घर में आज नया मेहमान आया है। जब मैंने पूछा लड़की हुयी है या लड़का तो उसने कहा कि मैं खुशी के चलते भाई साहब से विस्तार में बात ही नहीं की।आगे चलकर मैंने अनुभव …
Read More »भारतीय संस्कृति -हिंदी सिनेमा, बाजारवाद और नारी
नारी हमारे घर, परिवार, समाज, देश व दुनियां की वह धुरी है जिसके बगैर इस सृष्टि की कल्पना करना ही संभव नहीं है। ब्रह्मा जी अवश्य इस सृष्टि के रचयिता हैं किन्तु उनके लिए भी नारी के बिना इस सृष्टि की रचना कर पाना असंभव ही था। एक नारी ही …
Read More »स्वच्छ रहो,निरोग रहो-डोली शाह
पूतनी गांव में पली- बढ़ी एक साधारण परिवार की इकलौती बेटी थी। उसका छरहरा वदन ,साधारण एवं सरल व्यवहार हर किसी को भाता था । मां के साथ ही सूरज की लालिमा के साथ उठने वाली पूतनी घर के हर काम को बखूबी करती, मगर हां घर की साफ- सफाई, …
Read More »महत्वाकांक्षाओं में खोता बचपन-अमिता मराठे
वह छात्रावास में रहती थी। बहुत समझाने पर भी उसकी उदासीनता का कारण पता नहीं चल रहा था।अंत में वार्डन ने उसके पालकों को विद्यालय में बुलाया ।वह रो रही थी। बीच-बीच में आक्रोश भरी निगाहों से माँ को देख रही थी।”मेडम, ये मेरी माँ नहीं ,दुश्मन है।” सामने बैठी माँ …
Read More »अभिभावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन-सृष्टि
बच्चों का संसार जितना सहज है, उतना ही सरल भी। आज बच्चों की दुनिया पूरी तरह से बदली दिखती है। आज के युग के बच्चों का बचपन दादी-नानी की कहानी सुनकर नही, टीवी और मोबाइल के सामने गुज़रता है। बच्चों के लिए बनाए गए पार्क सूने पड़े हैं, आज कल …
Read More »अर्चना त्यागी की कहानी रिसर्च पेपर
अपनी नई पोस्टिंग से सुजीत बहुत ही खुश थे। शहर का नाम सुनते ही उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। सोने पर सुहागा हो गया जब उन्होंने जाकर देखा कि पुलिस स्टेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के बगल में ही था। नौकरी लग जाने के कारण वह अधिक पढ़ाई नहीं कर पाए …
Read More »मेरा गांव और बचपन-मुकेश
“याद आता है वो बचपन वो खिलखिलाते हुए मासूम चेहरे, वो एक साइकिल पर दोस्तों के साथ लगते गलियों के फेरे।वो गांव का दृश्य हमें अब भी याद आता है और याद आते ही शहर की भागादौड़ी से दूर फिर से गांव चले जाने का मन बना जाता है।” राघव …
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